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मामाजी की कुछ अविस्मरणीय यादें

     Playing Benjo in the NCC Cultural Event NCC Parade Participated in the Delhi Republic Day Parade
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दिवाली और पटाखें

दिवाली पर हो सकता है सबको अलग अलग चीज़ो का इंतज़ार रहता होगा | लेकिन मुझे रहता था एक काली नीली थैली का जो हमें मामा ज्यादातर दिवाली की शाम तक दे ही देते थे | यह एक विशेष पॉलीथिन की थैली थी जिसमे होते थे भिन्न भिन्न प्रकार के पटाखे |  मामा, परिवार के सभी बच्चों को दिवाली के दिन इस तरह की पटाखों की थैली देते थे | थैली के अंदर पटाखें भी उम्र के हिसाब से होते थे | छोटे बच्चो की थैली में छोटे पटाखे जैसे हरे रंग के छोटे छुटपुट पटाखे जो आदि बार खारिज निकलते थे और कुछ की आवाज़ ऐसी होती थी जैसे इसमें बुलेट बम्ब की जान आ गयी हो | इसके साथ में होती थी फुलछडीयो के पैकेट, टिकड़ियो के रील के रोल्स, साप की गोटियों की डिब्बिया, भींत भड़ाके, जमीन चक्कर, छोटी वाले अनार, रंगीन रोशनी वाली पेंसिल, रंगबिरंगी रौशनी वाली रस्सियाँ जिनसे जमीन पर नाम लिख लिखकर सारे मौहल्ले की जमीन अपने नाम कर लेते थे | बड़े बच्चो के पटाखों की थैली में होते थे हरे सुतली बम जिनको हमेशा कागज़ में रखकर जलाने को बोलते थे मामाजी | बुलेट बम जिसमे से थोड़ी देर चिंगारी निकलती थी जिससे भागने का समय मिल जाता था | बड़े वाले जमीन चक्कर, ब

दावत

 मामाजी को सभी परिवारजनों को बुलाने और खाना खिलाने का बहुत शौक था | चाहे खेखरा(a day after Diwali) हो या ठंडी राखी (a day after Rakhi) हो या और कोई त्यौहार या अवसर | सभी को फ़ोन करना और घर पर दावत के लिए बुलाना आम बात थी |  मामाजी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | मेरा तो ज्यादातर बचपन मामाजी के यही निकला तो मुझे  याद है कुछ चीजें मामा ही बनाते थे | खिचड़ी, रविवार के पोहे, अण्डा भुरजी, नॉन वेज, बिरयानी आदि |  जब भी कुछ स्पेशल बनाते थे तो अपनी बहनो के घर भेजने का बहुत था | मेरे घर पर भी मामा के यहाँ से आये दिन कुछ न कुछ परोसा आता ही था |    जब भी घर पर कुछ खाना होता और नॉन वेज बनता तो मामाजी ही बनाते थे | उस समय youtube तो नहीं था पर वो नयी नयी रेसिपी खुद से ही try करते थे | गर्मियाँ हो तो मेनू में नॉन वेज - बाटी या फिर वेज में दाल - बाटी - चूरमा या खीर - पुड़ी और सर्दियाँ हो तो नॉन वेज - मक्की के ढोकला या वेज में दाल - ढोकला, दाल - बाटी -चूरमा, खिचड़ी का कॉम्बिनेशन होता  था | एक चीज़ जो मुझे आज भी बहुत याद आती है वो की जब हम सब बच्चे इकट्ठे होते थे तो या तो छत्त पर क्रिकेट या कोई और

Mamaji - Backbone of the Family

बैकबॉन (रीढ़ की हडडी) जैसे शरीर का आधार होती है | या यू कहे की महत्वपूर्ण सपोर्ट सिस्टम | वैसे ही मामाजी बैकबॉन ऑफ़ द फैमिली थे | मतलब परिवार का आधार, सपोर्ट सिस्टम | या जो हर परेशानी में साथ में खड़े रहने वाला हो | या फिर यह भी कह सकते हो की हर बडे निर्णय में उनकी राय बहुत महत्वपूर्ण थी | उन्होंने परिवार में अपनी ऐसी जगह बना ली थी | सारी समस्याओ में साथ में डट कर खड़े रहना | दूसरो की परेशानियों को भी अपनी परेशानी समझना, सबकी मदद करना उनकी आदत में था |    परिवार के किसी भी सदस्य के छोटे-मोटे काम में उपलब्ध होना | हर परेशानी में साथ खड़े होना और सबसे बड़ी बात यह है की मौजूद होना | आज के जमाने में हर कोई अपने कामो में बिजी है | लेकिन वो हमेशा अपने कामो को छोड़कर परिवार के छोटे बड़े काम में या फिर किसी भी समस्या में साथ में खड़े होते थे |       मुझे तो आज भी याद है की मेरी मम्मी को कुछ भी समस्या आती तो वो पहला फोन कॉल मामा को ही करती थी | और मामाजी झटपट अपने सारे कामों को छोड़कर आ जाते थे | ये उनकी बहुत बड़ी बात थी | ऐसी कितने ही किस्से याद आते है जिसमे मामा का बहुत बड़ा योगदान जिनको मैं भूल नहीं सकत

VCR

यह बात उस समय की है | जब CD Player या फिर DVD Player का चलन नहीं था उस समय चलता था VCR VCR, एक बड़ा सा 6-7 किलो का भारी भरकम एक इलेक्ट्रॉनिक बक्सा होता था जिसमे रील वाली बड़ी वीडियो कैसेट लगती थी | मामाजी छुट्टियों में या फिर रविवार को बड़ा बक्सा थैले में स्कूटर के आगे रखकर लेकर आते थे | तो पता चल जाता था की आज VCR किराये पर आया हैं | आज हम पुरे दिन टीवी देख सकते है | इसका सेटअप करना और चलाना भी काफी मुश्किल होता था | शुरुआत के एक - दो घंटे तो सेटअप में ख़राब हो जाते थे कुछ कैसेट चलती फिर रील खर खर करती हुई अंदर हेड में अटक जाती फिर मामाजी वीसीआर खोलकर उलझी हुई रील को पैंसिल से गुमा गुमा कर वापिस सही से लगाते थे और रिमोट से आगे पीछे करते थे |  फिर सेटअप सही से होने के बाद टीवी पर वीडियो देखने का सिलसिला शुरू होता था | पहले शुरुआत होती थी शादियों के कैसेट्स से मामा की शादी की कैसेट, फिर मौसी की शादी की कैसेट | शादियों की कैसेट देख देखकर हम तो बोर हो जाते थे क्योकि बड़े लोग बार-बार पीछे कर करके देखते और हमारा कीमती समय खराब करते थे यू तो नहीं की एक ही बार में सही से देख ले जो देखना हो | उन्हो

मामा का गिफ्ट - मेरी नयी साइकिल

 मामाजी ने मुझे नयी साइकिल दिलायी थी | क्योंकि मै आठवीं बोर्ड की परीक्षा में अच्छे अंकों के साथ पास हुआ था | वैसे तो मेरे प्रतिशत मेरे दोस्तों से थोड़े कम आये थे | और मै रो रहा था | लेकिन फिर भी मामाजी ने मुझे नयी साइकिल दिलायी | काली कलर की स्टाइलिश साइकिल |   मुझे अंदाज़ा नहीं था की मुझे नयी साइकिल दिलाने वाले है |  मामा बाहर से आये थे फिर मुझे बोला चल साथ में और मै साथ में चला गया मुझे लगा कुछ सामान लेने या फिर मुखर्जी चौक सब्ज़ी लेने के लिए साथ में लिया है | क्योकि कुछ भी सामान लाना होता मामा मुझे अक्सर साथ में लेकर जाते थे | फिर पास में ही साइकिल वाले की दुकान पर स्कूटर रोक दिया और बोला तुझे कौनसी साइकिल लेनी है देख ले | मेरी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा | क्योकि ये मेरी पहली नयी साइकिल होगी क्योकि पहले भी एक साइकिल मिली थी पर पुरानी वाली | दुकान वाले ने एक बुकलेट थमा दी उसमें अलग अलग साइकिल के फोटो थे | उस समय गियर वाली साइकिल मार्केट में मिलती थी पर इतना चलन शुरू नहीं हुआ था | और दूकान वाला भी नॉन गियर साइकिल के लिए बोल रहा था | की गियर  वाली साइकिल मत लो उसमे दिक्कतें बहुत आती है | 

मामाजी का डर

मामाजी से हम सारे बच्चे बहुत डरते थे | मामाजी ने जो कह दिया वो मानना ही है | मामाजी का एक अलग ही खौफ था हमारे मन में | मामा के यहाँ हम सब बच्चे चाहे कुछ भी कर रहे हो, मस्ती कर रहे हो, लड़ रहे हो या खेल रहे हो | लेकिन जैसे ही उनके स्कूटर के रुकने की आवाज़ आती या फिर दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आती या फिर उनके खाँसने की आवाज़ आती सब एक दम सीधे हो जाते | टीवी देख रहे हो तो टीवी बंद कर पढ़ने बैठ जाते | खेल रहे हो तो वो बंद कर सब शान्त बैठ जाते | सारी मस्तियाँ उनके एक खांसने की आवाज़ या दरवाज़े की खटखट के साथ ही बंद हो जाती |  मामा के स्कूटर खड़ा करने की भी एक फिक्स जगह थी | स्कूटर, हमारे कमरे की खिड़की से थोड़ा झुक कर देखने पर साफ़ दिखता | अगर हमे छत पर खेलने जाना हो या बाहर कही जाना हो तो पहले ऊपर खिड़की से स्कूटर चेक करते की स्कूटर है की नहीं? स्कूटर नहीं है तो इसका मतलब है, मामाजी कही बाहर गए है | तो खेलने जा सकते है | अगर स्कूटर अपनी जगह ही है तो मामाजी घर पर ही है | तो फिर खेलने जाना है या बाहर जाना है तो फिर दबे पाँव जाना होगा | अगर छत पर खेलने गए और मामाजी ने आवाज़ दे दी तो फटाफट आना है | कभी कभी म

मोनो एक्टिंग (एकल अभिनय)

मामाजी ज्यादातर गंभीर मिजाज के थे | जितनी जरूरत हो उतनी बात करना, हमेशा मेहनत करना, दुसरो की मदद करना, अपने काम में बिजी रहना | उनका एक दूसरा रूप भी था जो बहुत ही खुशमिजाज था | वो उनकी मोनो एक्टिंग को देखने के बाद पता चला |         मुझे याद है हमारे समाज के नोहरे में नवरात्रि में बहुत अच्छा गरबा सम्मेलन होता था | बहुत अच्छा डांडिया खेला जाता था | नो ही दिन समाज के बहुत से लोग इकट्ठे होते थे | गरबा प्रांगण में सभी उम्र के लोगो के अलग अलग गोले(घेरे) बनते थे | और एक एक घंटे के गरबे के राउंड चलते थे | बहुत ज्यादा मजा आता था | रात को एक एक बजे तक गरबे होते थे | सारे समाज के लोग वही इकट्ठे होते थे | मामाजी भी गरबे के प्रोग्राम में बढ़ चढ़कर शामिल होते थे |  नवरात्रि के अंतिम दिनों में बहुत सारे कॉम्पिटिशंस भी होते थे | जैसे फैंसी ड्रेस, बेस्ट गरबा डांस, नाटक प्रतियोगिता, 1 minute प्रतियोगिता, गवरी, कुर्सी रेस, अंतराक्षरी प्रतियोगिता आदि | नवें दिन रात्रि जागरण भी होता था | और दशहरे के दिन सारे विजेताओं को पुरुस्कार वितरित किये जाते थे |    मैंने मामाजी को दो बार अलग अलग मोनो एक्टिंग करते देखा

टूथब्रश

मामाजी का टूथब्रश से बहुत लगाव था | मामाजी दिन में खाना खाने के बाद और रात को खाना खाने के बाद टूथब्रश जरूर करते थे | ये उनकी आदत में था | टूथब्रश से जुड़ा एक किस्सा याद आ रहा है | मेरे दसवीं बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे | दसवीं बोर्ड के एग्जाम पेपर का टाइम दिन का रहता था| दिन में 3 बजे से पेपर शुरू होता था | और मेरा एग्जाम सेंटर गवर्नमेंट स्कूल अम्बामाता में आया था | मामा मुझे एग्जाम सेंटर पर छोड़ने के लिए लंच टाइम पर आते थे | यह सच में मेरे लिए बड़ी बात थी क्योंकि अपने काम को बीच में छोड़कर मुझे सेंटर पर छोड़ने के लिए आते थे कई बार में बोलता भी था की में ऑटो में चला जाऊंगा लेकिन वो कहते थे आते समय ऑटो में आ जाना | जाते समय कहा ऑटो के चक्कर में पड़ेगा | एक बार मामा ऑफिस से आने में थोड़ा लेट हो गए तो आते ही फटाफट खाना खाया फिर जल्दी जल्दी बात करते हुए ब्रश पर पेस्ट लगाके दन्त मंजन करने लगे | लेकिन जैसे ही पेस्ट मुँह में गया तो बोला की ये पेस्ट को क्या हो गया ये इतना कड़वा क्यों लग रहा? फिर फटाफट मुँह धोने लगे ध्यान से देखा तो पता चला की जल्द बाज़ी में उन्होंने टूथ पेस्ट की बजाय सेविंग क्रीम ब्रश प

छोटा चेतन

मामाजी हम सब बच्चों को बहुत प्यार करते थे | हमें वो समय समय पर मनोरंजन करवाने के लिए कुछ कुछ करते रहते थे | वैसे अधिकतर जब भी उदयपुर में सर्कस लगता था तो वो हम सब बच्चो को सर्कस लेकर जाते थे |  मुझे आज भी याद है एक बार सर्कस बी. एन ग्राउंड में लगा था | तो वो हम सब बच्चो को सर्कस दिखाने के लिए लेके गए थे | वो भी एक ही स्कूटर पर | वो आधे बच्चो को लेकर आते फिर मेरे बड़े भाई को जिम्मेदारी देकर यही खड़े रहना फिर आधे बच्चो को लेने जाते | स्कूटर तो एक ही था और सब बच्चे छोटे थे ऑटो में भी नहीं आ सकते तो वो इस तरह से डबल चक्कर करके हमको सबको सर्कस दिखने लेके जाते थे | इसी तरह मुझे याद है एक बार बच्चो की मूवी लगी थी छोटा चेतन वो भी 3D में चेतक सिनेमा में | हमको पता चला की इसमें हमको सिनेमा हॉल में घुसते समय चश्मा मिलेगा |  इस तरह की 3D मूवी का अनुभव लेना भी हम सब बच्चों का पहली बार ही था |  पर दिमाग में एक प्रश्न भी था की जिनके चश्मा लग रहा है पहले से वो इस मूवी को कैसे देखेंगे ? अपना चश्मा हटाके ये 3D वाला चश्मा लगाएंगे? या फिर कैसे देखेंगे? क्योकि हमारे बच्चों की गैंग में 2-3 बच्चों की परेशानी ब