मामाजी को सभी परिवारजनों को बुलाने और खाना खिलाने का बहुत शौक था | चाहे खेखरा(a day after Diwali) हो या ठंडी राखी (a day after Rakhi) हो या और कोई त्यौहार या अवसर | सभी को फ़ोन करना और घर पर दावत के लिए बुलाना आम बात थी |
मामाजी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | मेरा तो ज्यादातर बचपन मामाजी के यही निकला तो मुझे याद है कुछ चीजें मामा ही बनाते थे | खिचड़ी, रविवार के पोहे, अण्डा भुरजी, नॉन वेज, बिरयानी आदि |
जब भी कुछ स्पेशल बनाते थे तो अपनी बहनो के घर भेजने का बहुत था | मेरे घर पर भी मामा के यहाँ से आये दिन कुछ न कुछ परोसा आता ही था |
जब भी घर पर कुछ खाना होता और नॉन वेज बनता तो मामाजी ही बनाते थे | उस समय youtube तो नहीं था पर वो नयी नयी रेसिपी खुद से ही try करते थे | गर्मियाँ हो तो मेनू में नॉन वेज - बाटी या फिर वेज में दाल - बाटी - चूरमा या खीर - पुड़ी और सर्दियाँ हो तो नॉन वेज - मक्की के ढोकला या वेज में दाल - ढोकला, दाल - बाटी -चूरमा, खिचड़ी का कॉम्बिनेशन होता था |
एक चीज़ जो मुझे आज भी बहुत याद आती है वो की जब हम सब बच्चे इकट्ठे होते थे तो या तो छत्त पर क्रिकेट या कोई और खेल खेलते थे | फिर मामाजी सब्ज़ी बना रहे होते तो सब बच्चों को नीचे कमरे में बुलाते थे | फिर एक बड़े टिफ़िन जैसे में गरम - गरम कुछ लेकर आते और सबके पास आकर मुँह खोलने के लिए बोलते | फिर अपने ही हाथ से सबके मुँह में स्पेशल चीज़ डालते थे | वो खाकर मज़ा आ जाता था | लेकिन वो चीज़ एक बार ही मिलती थी क्योंकि इतने सारे बच्चे होते थे | वो थीं कलेजी |
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