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मामाजी की कुछ अविस्मरणीय यादें

    
Playing Benjo in the NCC Cultural Event


NCC Parade




Participated in the Delhi Republic Day Parade


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दावत

 मामाजी को सभी परिवारजनों को बुलाने और खाना खिलाने का बहुत शौक था | चाहे खेखरा(a day after Diwali) हो या ठंडी राखी (a day after Rakhi) हो या और कोई त्यौहार या अवसर | सभी को फ़ोन करना और घर पर दावत के लिए बुलाना आम बात थी |  मामाजी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | मेरा तो ज्यादातर बचपन मामाजी के यही निकला तो मुझे  याद है कुछ चीजें मामा ही बनाते थे | खिचड़ी, रविवार के पोहे, अण्डा भुरजी, नॉन वेज, बिरयानी आदि |  जब भी कुछ स्पेशल बनाते थे तो अपनी बहनो के घर भेजने का बहुत था | मेरे घर पर भी मामा के यहाँ से आये दिन कुछ न कुछ परोसा आता ही था |    जब भी घर पर कुछ खाना होता और नॉन वेज बनता तो मामाजी ही बनाते थे | उस समय youtube तो नहीं था पर वो नयी नयी रेसिपी खुद से ही try करते थे | गर्मियाँ हो तो मेनू में नॉन वेज - बाटी या फिर वेज में दाल - बाटी - चूरमा या खीर - पुड़ी और सर्दियाँ हो तो नॉन वेज - मक्की के ढोकला या वेज में दाल - ढोकला, दाल - बाटी -चूरमा, खिचड़ी का कॉम्बिनेशन होता  था | एक चीज़ जो मुझे आज भी बहुत याद आती ...

दिवाली और पटाखें

दिवाली पर हो सकता है सबको अलग अलग चीज़ो का इंतज़ार रहता होगा | लेकिन मुझे रहता था एक काली नीली थैली का जो हमें मामा ज्यादातर दिवाली की शाम तक दे ही देते थे | यह एक विशेष पॉलीथिन की थैली थी जिसमे होते थे भिन्न भिन्न प्रकार के पटाखे |  मामा, परिवार के सभी बच्चों को दिवाली के दिन इस तरह की पटाखों की थैली देते थे | थैली के अंदर पटाखें भी उम्र के हिसाब से होते थे | छोटे बच्चो की थैली में छोटे पटाखे जैसे हरे रंग के छोटे छुटपुट पटाखे जो आदि बार खारिज निकलते थे और कुछ की आवाज़ ऐसी होती थी जैसे इसमें बुलेट बम्ब की जान आ गयी हो | इसके साथ में होती थी फुलछडीयो के पैकेट, टिकड़ियो के रील के रोल्स, साप की गोटियों की डिब्बिया, भींत भड़ाके, जमीन चक्कर, छोटी वाले अनार, रंगीन रोशनी वाली पेंसिल, रंगबिरंगी रौशनी वाली रस्सियाँ जिनसे जमीन पर नाम लिख लिखकर सारे मौहल्ले की जमीन अपने नाम कर लेते थे | बड़े बच्चो के पटाखों की थैली में होते थे हरे सुतली बम जिनको हमेशा कागज़ में रखकर जलाने को बोलते थे मामाजी | बुलेट बम जिसमे से थोड़ी देर चिंगारी निकलती थी जिससे भागने का समय मिल जाता था | बड़े वाले...