Skip to main content

टूथब्रश

मामाजी का टूथब्रश से बहुत लगाव था | मामाजी दिन में खाना खाने के बाद और रात को खाना खाने के बाद टूथब्रश जरूर करते थे | ये उनकी आदत में था |

टूथब्रश से जुड़ा एक किस्सा याद आ रहा है | मेरे दसवीं बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे | दसवीं बोर्ड के एग्जाम पेपर का टाइम दिन का रहता था| दिन में 3 बजे से पेपर शुरू होता था | और मेरा एग्जाम सेंटर गवर्नमेंट स्कूल अम्बामाता में आया था | मामा मुझे एग्जाम सेंटर पर छोड़ने के लिए लंच टाइम पर आते थे | यह सच में मेरे लिए बड़ी बात थी क्योंकि अपने काम को बीच में छोड़कर मुझे सेंटर पर छोड़ने के लिए आते थे कई बार में बोलता भी था की में ऑटो में चला जाऊंगा लेकिन वो कहते थे आते समय ऑटो में आ जाना | जाते समय कहा ऑटो के चक्कर में पड़ेगा |

एक बार मामा ऑफिस से आने में थोड़ा लेट हो गए तो आते ही फटाफट खाना खाया फिर जल्दी जल्दी बात करते हुए ब्रश पर पेस्ट लगाके दन्त मंजन करने लगे | लेकिन जैसे ही पेस्ट मुँह में गया तो बोला की ये पेस्ट को क्या हो गया ये इतना कड़वा क्यों लग रहा? फिर फटाफट मुँह धोने लगे ध्यान से देखा तो पता चला की जल्द बाज़ी में उन्होंने टूथ पेस्ट की बजाय सेविंग क्रीम ब्रश पर लगा दी थी | और सेविंग क्रीम तो मीठी नहीं कड़वी होती है उस दिन पता चला | 😃

हुआ यू की सेविंग क्रीम और टूथपेस्ट की ट्यूब दोनों ही ब्रश होल्डर स्टैंड में साथ में पड़ी थी तो जल्दबाजी में उन्होंने सेविंग क्रीम उठा ली थीं |  

मैं जैसे तैसे करके मेरी हॅसी रोक रहा था | कही हसते देख मामा मुझे डॉट नहीं दे | लेकिन मेरी हॅसी रुक नहीं रही थी | मै पूरे रास्ते स्कूटर पर पीछे बैठ कर मुँह पर हाथ रखकर हसता ही रहा |  एग्जाम में लेट होने की टेंशन तो कही गायब ही हो गयी थीं |                   

Comments

Popular posts from this blog

मामाजी की कुछ अविस्मरणीय यादें

     Playing Benjo in the NCC Cultural Event NCC Parade Participated in the Delhi Republic Day Parade

दावत

 मामाजी को सभी परिवारजनों को बुलाने और खाना खिलाने का बहुत शौक था | चाहे खेखरा(a day after Diwali) हो या ठंडी राखी (a day after Rakhi) हो या और कोई त्यौहार या अवसर | सभी को फ़ोन करना और घर पर दावत के लिए बुलाना आम बात थी |  मामाजी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | मेरा तो ज्यादातर बचपन मामाजी के यही निकला तो मुझे  याद है कुछ चीजें मामा ही बनाते थे | खिचड़ी, रविवार के पोहे, अण्डा भुरजी, नॉन वेज, बिरयानी आदि |  जब भी कुछ स्पेशल बनाते थे तो अपनी बहनो के घर भेजने का बहुत था | मेरे घर पर भी मामा के यहाँ से आये दिन कुछ न कुछ परोसा आता ही था |    जब भी घर पर कुछ खाना होता और नॉन वेज बनता तो मामाजी ही बनाते थे | उस समय youtube तो नहीं था पर वो नयी नयी रेसिपी खुद से ही try करते थे | गर्मियाँ हो तो मेनू में नॉन वेज - बाटी या फिर वेज में दाल - बाटी - चूरमा या खीर - पुड़ी और सर्दियाँ हो तो नॉन वेज - मक्की के ढोकला या वेज में दाल - ढोकला, दाल - बाटी -चूरमा, खिचड़ी का कॉम्बिनेशन होता  था | एक चीज़ जो मुझे आज भी बहुत याद आती ...

दिवाली और पटाखें

दिवाली पर हो सकता है सबको अलग अलग चीज़ो का इंतज़ार रहता होगा | लेकिन मुझे रहता था एक काली नीली थैली का जो हमें मामा ज्यादातर दिवाली की शाम तक दे ही देते थे | यह एक विशेष पॉलीथिन की थैली थी जिसमे होते थे भिन्न भिन्न प्रकार के पटाखे |  मामा, परिवार के सभी बच्चों को दिवाली के दिन इस तरह की पटाखों की थैली देते थे | थैली के अंदर पटाखें भी उम्र के हिसाब से होते थे | छोटे बच्चो की थैली में छोटे पटाखे जैसे हरे रंग के छोटे छुटपुट पटाखे जो आदि बार खारिज निकलते थे और कुछ की आवाज़ ऐसी होती थी जैसे इसमें बुलेट बम्ब की जान आ गयी हो | इसके साथ में होती थी फुलछडीयो के पैकेट, टिकड़ियो के रील के रोल्स, साप की गोटियों की डिब्बिया, भींत भड़ाके, जमीन चक्कर, छोटी वाले अनार, रंगीन रोशनी वाली पेंसिल, रंगबिरंगी रौशनी वाली रस्सियाँ जिनसे जमीन पर नाम लिख लिखकर सारे मौहल्ले की जमीन अपने नाम कर लेते थे | बड़े बच्चो के पटाखों की थैली में होते थे हरे सुतली बम जिनको हमेशा कागज़ में रखकर जलाने को बोलते थे मामाजी | बुलेट बम जिसमे से थोड़ी देर चिंगारी निकलती थी जिससे भागने का समय मिल जाता था | बड़े वाले...