मुझे आज भी याद है एक बार सर्कस बी. एन ग्राउंड में लगा था | तो वो हम सब बच्चो को सर्कस दिखाने के लिए लेके गए थे | वो भी एक ही स्कूटर पर | वो आधे बच्चो को लेकर आते फिर मेरे बड़े भाई को जिम्मेदारी देकर यही खड़े रहना फिर आधे बच्चो को लेने जाते | स्कूटर तो एक ही था और सब बच्चे छोटे थे ऑटो में भी नहीं आ सकते तो वो इस तरह से डबल चक्कर करके हमको सबको सर्कस दिखने लेके जाते थे |
इसी तरह मुझे याद है एक बार बच्चो की मूवी लगी थी छोटा चेतन वो भी 3D में चेतक सिनेमा में | हमको पता चला की इसमें हमको सिनेमा हॉल में घुसते समय चश्मा मिलेगा | इस तरह की 3D मूवी का अनुभव लेना भी हम सब बच्चों का पहली बार ही था |
पर दिमाग में एक प्रश्न भी था की जिनके चश्मा लग रहा है पहले से वो इस मूवी को कैसे देखेंगे ? अपना चश्मा हटाके ये 3D वाला चश्मा लगाएंगे? या फिर कैसे देखेंगे? क्योकि हमारे बच्चों की गैंग में 2-3 बच्चों की परेशानी बहुत बढ़ गयी थी की अब हमारा क्या होगा क्योकि उस समय तक तो लैंस का सिस्टम तो था नहीं |
जब गए तो वहाँ जाकर पता चला की आप ये 3d वाला चश्मा अपने चश्मे के ऊपर लगा सकते हो | इस तरह से उनके साँस में साँस आयी और उनकी परेशानी का हल हुआ |
मुझे याद आ रहा है की छोटा चेतन जब देखने गए थे तो बच्चो की संख्या बढ़ गयी थी क्योकि मामाजी की शादी हो गयी थीं और अब बच्चे बढ गए थे | मामाजी किसी बच्चे को छोड़ना नहीं चाहते थे | तो उन्होंने स्कूटर पर 3 से 4 चक्कर काटे चेतक सिनेमा तक सबको पहुचाने के लिए कुछ को सूरजपोल से लिया, कुछ को हाथीपोल से लिया |
उन्होंने किसी को छोड़ा नहीं | सबको छोटा चेतन मूवी दिखाई और मूवी में बहुत मजा आया | क्योंकि ये 3d में चश्मा लगाकर मूवी देखने का अनुभव पहली बार ही था | ऐसा लग रहा था की एक अलग ही world में चले गए है |
कोई तलवार चला रहा था तो हम बचने की कोशिश कर रहे थे | डर डर कर बीच में चश्मा उतार देते फिर बिना चश्मे के तो स्क्रीन पर सब धुंधला धुंधला दिखता | उस दिन तो कुल मिलाकर फुल मजे आ गए थे |
थैंक यू मामाजी
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