मामाजी से हम सारे बच्चे बहुत डरते थे | मामाजी ने जो कह दिया वो मानना ही है | मामाजी का एक अलग ही खौफ था हमारे मन में | मामा के यहाँ हम सब बच्चे चाहे कुछ भी कर रहे हो, मस्ती कर रहे हो, लड़ रहे हो या खेल रहे हो | लेकिन जैसे ही उनके स्कूटर के रुकने की आवाज़ आती या फिर दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आती या फिर उनके खाँसने की आवाज़ आती सब एक दम सीधे हो जाते | टीवी देख रहे हो तो टीवी बंद कर पढ़ने बैठ जाते | खेल रहे हो तो वो बंद कर सब शान्त बैठ जाते | सारी मस्तियाँ उनके एक खांसने की आवाज़ या दरवाज़े की खटखट के साथ ही बंद हो जाती |
मामा के स्कूटर खड़ा करने की भी एक फिक्स जगह थी | स्कूटर, हमारे कमरे की खिड़की से थोड़ा झुक कर देखने पर साफ़ दिखता | अगर हमे छत पर खेलने जाना हो या बाहर कही जाना हो तो पहले ऊपर खिड़की से स्कूटर चेक करते की स्कूटर है की नहीं? स्कूटर नहीं है तो इसका मतलब है, मामाजी कही बाहर गए है | तो खेलने जा सकते है | अगर स्कूटर अपनी जगह ही है तो मामाजी घर पर ही है | तो फिर खेलने जाना है या बाहर जाना है तो फिर दबे पाँव जाना होगा | अगर छत पर खेलने गए और मामाजी ने आवाज़ दे दी तो फटाफट आना है |
कभी कभी मामाजी दूकान पर बैठते थे तो उस समय अगर बाहर जाना है तो मुश्किल था क्योकि main रास्ता
दुकान के सामने से जाता था और उनके सामने से जाने में डर लगता था | अभी कही पूछ ले की कहाँ जा रहे हो तो क्या जवाब देंगे? अभी कही बाहर जाने से मना कर देंगे या डॉट देंगे तो | इसलिए कभी जरुरी काम है और बाहर जाना है तो हमारे नाना के घर के दूसरी ओर एक पतली गली थी जिसमे सब कचरा डालते थे जो आगे जाकर पीछे के रास्ते से मिलती थी | तो हम main रास्ते का उपयोग ना करके इस पतली गली का उपयोग करते थे फिर ऐसे पीछे के रास्ते से बाहर जाते थे | सच में मामाजी से बहुत डर लगता था |
नाना के घर जो main दरवाज़ा था वो लोहे का दरवाज़ा था | जिसके खुलने से खटखट की आवाज़ होती थी | आवाज़ सुनते ही सब सतर्क हो जाते | एक बच्चा दबे पाँव जाकर चेक करके आता की कौन आया है? अगर मामाजी की खांसी की आवाज़ आती तो सब सतर्क हो जाते की बस अब कुछ ऐसी गलती नहीं करनी की मामाजी की डॉट खानी पड़े | सारी मस्तियाँ बंद कर दो अब | पढ़ाई में लग जाओ अब |
सब बच्चे मामाजी से बहुत डरते थे | लेकिन प्यार और उनका आदर भी बहुत करते थे | उन्होंने अगर कुछ काम कहा है तो वो करना ही है | उन्होंने कुछ बात कही है तो वो माननी ही है | डर की वजह से नहीं बल्कि उनकी रेस्पेक्ट की वजह से | इसके कई कारण थे किसी और दिन बताऊंगा | मेरी मम्मी के लिए तो मामाजी लाइफलाइन की तरह थे कुछ भी समस्या आती तो सबसे पहले मामा को फ़ोन कर देती और जल्द ही मामाजी पहुँच जाते |
मै अपनी बात करू तो मै तो उनकी प्रशंसा का भूखा था | हमेशा यही कोशिश करता की ऐसा काम करू की मामा मेरी थोड़ी सी प्रशंसा कर ले बस और क्या चाहिए | जिस दिन मामा सबके सामने मेरी थोड़ी सी प्रशंसा कर लेते थे मेरा दिन बन जाता था |
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