मामाजी ज्यादातर गंभीर मिजाज के थे | जितनी जरूरत हो उतनी बात करना, हमेशा मेहनत करना, दुसरो की मदद करना, अपने काम में बिजी रहना | उनका एक दूसरा रूप भी था जो बहुत ही खुशमिजाज था | वो उनकी मोनो एक्टिंग को देखने के बाद पता चला |
मुझे याद है हमारे समाज के नोहरे में नवरात्रि में बहुत अच्छा गरबा सम्मेलन होता था | बहुत अच्छा डांडिया खेला जाता था | नो ही दिन समाज के बहुत से लोग इकट्ठे होते थे | गरबा प्रांगण में सभी उम्र के लोगो के अलग अलग गोले(घेरे) बनते थे | और एक एक घंटे के गरबे के राउंड चलते थे | बहुत ज्यादा मजा आता था | रात को एक एक बजे तक गरबे होते थे | सारे समाज के लोग वही इकट्ठे होते थे | मामाजी भी गरबे के प्रोग्राम में बढ़ चढ़कर शामिल होते थे |
नवरात्रि के अंतिम दिनों में बहुत सारे कॉम्पिटिशंस भी होते थे | जैसे फैंसी ड्रेस, बेस्ट गरबा डांस, नाटक प्रतियोगिता, 1 minute प्रतियोगिता, गवरी, कुर्सी रेस, अंतराक्षरी प्रतियोगिता आदि | नवें दिन रात्रि जागरण भी होता था | और दशहरे के दिन सारे विजेताओं को पुरुस्कार वितरित किये जाते थे |
मैंने मामाजी को दो बार अलग अलग मोनो एक्टिंग करते देखा था | सच बताऊ तो दोनों ही बार उनको पहचान नहीं पाया था | सच में कमाल की एक्टिंग की थी | बिना कुछ बोले, खाली अपने चेहरे के हावभाव से और अपनी वेशभूषा से सभी को हँसा हँसा कर लोटपोट कर दिया था | सब लोग उनके अभिनय की बहुत तारीफ़ कर रहे थे |
एक बार उन्होंने भिखारी का रोल किया था, जिसमें उन्होंने फटा बनियान, चड्ढा पहन कर, एक लकड़ी, खाली केतली, एक पोटली लेकर, चेहरे पर अलग रंग लगाकर जो उन्होंने मोनो एक्टिंग की, सच में मजा आ गया | बहुत ध्यान से गौर करके देखा तो पता चला की ये मामा ही है |
दूसरी बार उन्होंने एक कंजूस मोटे पेट वाले सेठजी का किरदार निभाया था जब वो स्टेज पर आये तो पता ही नही चला कौन है क्योकि मामाजी तो पतले थे लेकिन वो कंजूस सेठ तो बहुत मोटा था | ध्यान से देखा तो समझ आया की मामा ही है | बिना बोले खाली एक्सप्रेशन से जो उन्होंने कंजूस सेठ का किरदार निभाया वाकई में लाजवाब था | बिना बोले उन्होंने दिखाया की कैसे एक कंजूस सेठ रेस्टॉरेंट में खाना खाने जाता है | और फिर वह बहुत सारे पकवान वेटर से मंगवाता है | सारे पकवान का मस्त आनंद लेता है फिर लास्ट में जब वेटर बिल लेकर आता है तो कंजूस सेठ खाने में बाल डाल देता है और वेटर को बाल दिखाता है और गले में खाना उलझने का नाटक करता है और इस तरह से पूरा खाना खाने के बाद नाटक करके कंजूस सेठ बिना पैसे दिए रेस्टॉरेंट से चला जाता है|
वाकई में जो एक्सप्रेशन उन्होंने दिये काबिले तारीफ थे | सभी ने उनकी मोनो एक्टिंग को बहुत एन्जॉय किया |
मुझे मामाजी से हमेशा डर लगता था | सामने जाने से भी डरता था कही मुझे डॉट नहीं दे | बहुत बार मामा घर मेरी मम्मी से मिलने या फिर कुछ देने आते थे तो मै वहा से भाग जाता फिर वो जाते तो वापिस आता | ये खाली मेरे अकेले के साथ नहीं था हम सब बच्चे मामाजी से बहुत डरते थे | पता नहीं क्यों ?
मुझे लगता था मामा तो बहुत सीरियस है इस तरह का नाटक करना तो मेरी कल्पना से भी परे था | लेकिन जब उनकी मोनो एक्टिंग देखी तो उनका एक अलग रूप देखा था, जो सच में बहुत ही लाजवाब था और बहुत ही आनन्दित करने वाला था |
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