यह बात उस समय की है | जब CD Player या फिर DVD Player का चलन नहीं था उस समय चलता था VCR
VCR, एक बड़ा सा 6-7 किलो का भारी भरकम एक इलेक्ट्रॉनिक बक्सा होता था जिसमे रील वाली बड़ी वीडियो कैसेट लगती थी |
मामाजी छुट्टियों में या फिर रविवार को बड़ा बक्सा थैले में स्कूटर के आगे रखकर लेकर आते थे | तो पता चल जाता था की आज VCR किराये पर आया हैं | आज हम पुरे दिन टीवी देख सकते है | इसका सेटअप करना और चलाना भी काफी मुश्किल होता था | शुरुआत के एक - दो घंटे तो सेटअप में ख़राब हो जाते थे कुछ कैसेट चलती फिर रील खर खर करती हुई अंदर हेड में अटक जाती फिर मामाजी वीसीआर खोलकर उलझी हुई रील को पैंसिल से गुमा गुमा कर वापिस सही से लगाते थे और रिमोट से आगे पीछे करते थे |
फिर सेटअप सही से होने के बाद टीवी पर वीडियो देखने का सिलसिला शुरू होता था | पहले शुरुआत होती थी शादियों के कैसेट्स से मामा की शादी की कैसेट, फिर मौसी की शादी की कैसेट | शादियों की कैसेट देख देखकर हम तो बोर हो जाते थे क्योकि बड़े लोग बार-बार पीछे कर करके देखते और हमारा कीमती समय खराब करते थे यू तो नहीं की एक ही बार में सही से देख ले जो देखना हो | उन्होंने क्या दिया? उसने कौनसी ड्रेस पहनी है? वो किसका लड़का है ? सारी फालतू की बातें चलती रहती थी |
सबकी शादियाँ निपटने के बाद दौर शुरू होता था फिल्मों का | वीसीआर के साथ कुछ फिल्मो की कैसेट्स भी मामाजी किराये पर लाते थे | आराधना, दो कलियाँ, चुपके-चुपके, पड़ोसन, छोटी सी बात, नया दौर, अनुपमा, सौदागर आदि-आदि फिल्मों के कैसेट्स | एक के बाद एक लगातार फिल्मे चलती | क्योंकि वीसीआर का किराया भी तो वसूलना होता था | क्योंकि वीसीआर एक-दो दिन के लिए ही किराये पर लाते थे | कुछ मूवी पूरी
देख पाते थे और कुछ आधी अधूरी ही क्योकि कुछ कैसेट आगे ख़राब होती और बार-बार उलझ कर खर खर करके अटक जाती फिर सही करके लगाते तो थोड़ी देर पर फिर अटक जाती या फिर किसी की मूवी प्रिंट साफ़ नहीं आती मूवी का सारा मजा ख़राब हो जाता | उस समय इंटरनेट और यूट्यूब तो था नहीं की दूसरी जगह जाकर देख लो | फिर इंतज़ार करना पड़ता था, दूरदर्शन या फिर दूसरे चैनल पर आने का | फिर अधूरी मूवी कम्पलीट कर पाते थे |
Comments
Post a Comment