बैकबॉन (रीढ़ की हडडी) जैसे शरीर का आधार होती है | या यू कहे की महत्वपूर्ण सपोर्ट सिस्टम | वैसे ही मामाजी बैकबॉन ऑफ़ द फैमिली थे | मतलब परिवार का आधार, सपोर्ट सिस्टम | या जो हर परेशानी में साथ में खड़े रहने वाला हो | या फिर यह भी कह सकते हो की हर बडे निर्णय में उनकी राय बहुत महत्वपूर्ण थी | उन्होंने परिवार में अपनी ऐसी जगह बना ली थी | सारी समस्याओ में साथ में डट कर खड़े रहना | दूसरो की परेशानियों को भी अपनी परेशानी समझना, सबकी मदद करना उनकी आदत में था |
परिवार के किसी भी सदस्य के छोटे-मोटे काम में उपलब्ध होना | हर परेशानी में साथ खड़े होना और सबसे बड़ी बात यह है की मौजूद होना | आज के जमाने में हर कोई अपने कामो में बिजी है | लेकिन वो हमेशा अपने कामो को छोड़कर परिवार के छोटे बड़े काम में या फिर किसी भी समस्या में साथ में खड़े होते थे |
मुझे तो आज भी याद है की मेरी मम्मी को कुछ भी समस्या आती तो वो पहला फोन कॉल मामा को ही करती थी | और मामाजी झटपट अपने सारे कामों को छोड़कर आ जाते थे | ये उनकी बहुत बड़ी बात थी | ऐसी कितने ही किस्से याद आते है जिसमे मामा का बहुत बड़ा योगदान जिनको मैं भूल नहीं सकता |
एक छोटी सी घटना मुझे याद आ रही है | मैं चौथी कक्षा से उत्तीर्ण होकर पांचवी कक्षा में गया था | शायद अप्रैल का महीना होगा | हमारे स्कूल की गर्मियों की छुट्टिया पड़ने से पहले एक महीने नयी कक्षा का सेशन चलता था | उस स्कूल शुरू ही हुए थे | शनिवार का दिन था और मैं अपनी स्कूल की बस चूक गया क्योंकि लेट हो गया था | क्योंकि उस दिन एक अलग घटना हुई थी | पापा की कार में से किसी ने रात में गेट खोलकर कार की ऑडियो म्यूजिक टेप चुरा ली थी | उसी में सब परेशान थे | और इसी के चक्कर में लेट हो गया था | वैसे तो मैं कई बार लेट होता और मेरी बस चूक जाती थी फिर स्कूल जाने का सहारा होता नागदा जी सर, जो हमारे स्कूल में ही इंग्लिश पढ़ाते थे | पास की ही पोल में रहते थे, उनके स्कूटर पर साथ बैठकर चला जाता था | अगर वो भी निकल गए तो पब्लिक मकोड़ा ऑटो पकड़ो और उसमे जाओ | वैसे वो 3 टायर वाले पुराने मकोड़ा आकार के बड़े ऑटो अब नहीं चलते है |
उस दिन बहुत लेट हो गए थे | नागदा जी सर भी निकल गए थे | अब ऑटो में जाने के अलावा कोई सहारा नहीं
था | मैं और मेरा छोटा भाई ऑटो में गए | स्कूल के पास ही पापा का कार स्टैंड था | जैसे ही स्कूल के स्टैंड के पास पहुंचे तो ऑटो ड्राइवर ने बोला जल्दी उतरो मेरा भी ध्यान सुबह की घटना पर था और जल्द बाज़ी में मेरा पैर उतरते समय फस गया और मैं गिर गया और गिरा भी हाथ के बल पर और मेरा दाहिना हाथ टूट गया | उधर कार स्टैंड से पापा देख ही रहे थे | मेरे छोटे भाई ने पापा को इशारे से बुलाया | पापा और कुछ लोग आये ऑटो वाले से लड़ाई की फिर कार में लेकर हॉस्पिटल लेकर गए |
जैसे ही हम हॉस्पिटल पहुँचे तो मैंने वहाँ देखा मम्मी आ गयी थी | और वहाँ डॉक्टर को दिखाने की लाइन में बैठे ही थे की मैंने देखा मामा वहाँ आ गये थे | जैसे ही मैंने मामा को देखा तो मुझे लगा अब सब सही हो जायेगा | मामा सब संभाल लेंगे | और उन्होंने सब संभाल भी लिया | यह उनकी बहुत बड़ी खासियत थी की जहाँ परेशानी हो, समस्या हो | खाली उनको बताने की देर है, वो पहुँच जाते थे |
पहले 3 दिन का कच्चा प्लास्टर चढ़ा फिर 3 दिन बाद डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए बुलाया तब भी मामा मौजूद थे | मुझे बेहोश किया, ऑपेरशन हुआ | जब आँख खुली तो हाथ पर पक्का प्लास्टर चढ़ा हुआ था वो 2 महीने तक रहा | वैसे तो मैं लेफ्टी हु और मेरा राइट हैंड टूटा था लेकिन स्कूल से छुट्टी ले ली थी | वैसे भी एक महीने बाद स्कूल में गर्मी की छुट्टिया पड़ ही गयी थी | ये दो महीने मैं, मामा के घर ही रहा था | मामा और नाना ने मेरा बहुत ध्यान रखा | मुझे नहलाते भी मामा और नाना ही थे | रोज रात को सोने से पहले एक बड़ी गिलास दूध देते थे | वो पीना जरुरी था | ताकि हडडी जल्दी जुड़ जाये | कभी कभी दूध में अंडा डालकर देते थे | नाक बंद करके एक घूँट में दूध पीना पड़ता था | ये बहुत मुश्किल काम था पर मामा के डर के कारण करना पड़ता था | वापिस एक्स रे कराने मामा ही स्कूटर पर लेकर जाते थे, देखने की हड्डी ठीक से जुडी की नहीं | फिर दो महीने बाद प्लास्टर खुलवाने भी मामा ही लेकर गए |
ऐसी छोटी छोटी कितनी ही घटनाये है | जिनसे कहा जा सकता है की मामाजी, परिवार के बहुत महत्वपूर्ण सपोर्ट सिस्टम थे | थैंक यू मामाजी |
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