मामाजी ज्यादातर गंभीर मिजाज के थे | जितनी जरूरत हो उतनी बात करना, हमेशा मेहनत करना, दुसरो की मदद करना, अपने काम में बिजी रहना | उनका एक दूसरा रूप भी था जो बहुत ही खुशमिजाज था | वो उनकी मोनो एक्टिंग को देखने के बाद पता चला | मुझे याद है हमारे समाज के नोहरे में नवरात्रि में बहुत अच्छा गरबा सम्मेलन होता था | बहुत अच्छा डांडिया खेला जाता था | नो ही दिन समाज के बहुत से लोग इकट्ठे होते थे | गरबा प्रांगण में सभी उम्र के लोगो के अलग अलग गोले(घेरे) बनते थे | और एक एक घंटे के गरबे के राउंड चलते थे | बहुत ज्यादा मजा आता था | रात को एक एक बजे तक गरबे होते थे | सारे समाज के लोग वही इकट्ठे होते थे | मामाजी भी गरबे के प्रोग्राम में बढ़ चढ़कर शामिल होते थे | नवरात्रि के अंतिम दिनों में बहुत सारे कॉम्पिटिशंस भी होते थे | जैसे फैंसी ड्रेस, बेस्ट गरबा डांस, नाटक प्रतियोगिता, 1 minute प्रतियोगिता, गवरी, कुर्सी रेस, अंतराक्षरी प्रतियोगिता आदि | नवें दिन रात्रि जागरण भी होता था | और दशहरे के दिन सारे विजेताओं को पुरुस्कार वितरित किये जाते...