Skip to main content

गर्मी की छुट्टियाँ


हमारे स्कूल में दो महीने की गर्मी की छुट्टियाँ पड़ती थी |  मुझे स्कूल की गर्मी की छुट्टियाँ बहुत अच्छी लगती थी ज्यादातर गर्मी की छुट्टियों में  मै मामा के यहाँ ही रहता था | मुझे वैसे तो मामा से बहुत डर लगता था लेकिन मामा  के यहाँ मजा भी बहुत आता था | मामा के यहाँ आनंद ही आनंद था | 

गुलाबबाग जाना, दिन में कुल्फ़ी के लुफ्त उठाना, टीवी पर वीडियो गेम खेलना, शाम को छत पर क्रिकेट खेलना, पतंग उड़ाना, लल्लू राम की कचोरी खाना, रात को नाना के साथ घूमने जाना और तारामल की दुकान पर दूध पीना, रबड़ी खाना आदि आदि|  

नाना और मामा ने हमको बचपन में बहुत मजे कराये |  हमारा बचपन बहुत अच्छा निकला | 

इन्ही गर्मी की छुट्टियों में एक मजा था रोज सुबह मामा हमको तैराकी सिखाने के लिए फतहसागर लेकर जाते थे | रोज सुबह हमको जल्दी उठा देते थे फिर स्कूटर पर फतहसागर लेकर जाते थे | साथ में लेते थे टायर का टयूब और रस्सी | 

हम सब बच्चो को एक एक टयूब पहनाकर पानी में फेंक देते थे | हम वहाँ तैरना तो नहीं सीखते खाली पानी में खेलते थे एक दूसरे को पकड़ना | फिर मामा निचे से आकर हमको निचे खींच लेते थे  और डुबकी लगवा देते | फिर धीरे धीरे रस्सी से बांधकर हमको तैराकी सिखाते | लेकिन हमको तो सिखने से ज्यादा तो पानी में टयूब लगाकर खेलने में मजा आता था |  लेकिन धीरे धीरे मुझे तैराकी सीखना अच्छा लगने लगा और हाथ पैर चलाना मामा ने आखिरकार सीखा ही दिया | इस तरह से थोड़ी तैराकी मामा ने खुद ही सीखा दी थी | 


Comments

Popular posts from this blog

मामाजी की कुछ अविस्मरणीय यादें

     Playing Benjo in the NCC Cultural Event NCC Parade Participated in the Delhi Republic Day Parade

दावत

 मामाजी को सभी परिवारजनों को बुलाने और खाना खिलाने का बहुत शौक था | चाहे खेखरा(a day after Diwali) हो या ठंडी राखी (a day after Rakhi) हो या और कोई त्यौहार या अवसर | सभी को फ़ोन करना और घर पर दावत के लिए बुलाना आम बात थी |  मामाजी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | मेरा तो ज्यादातर बचपन मामाजी के यही निकला तो मुझे  याद है कुछ चीजें मामा ही बनाते थे | खिचड़ी, रविवार के पोहे, अण्डा भुरजी, नॉन वेज, बिरयानी आदि |  जब भी कुछ स्पेशल बनाते थे तो अपनी बहनो के घर भेजने का बहुत था | मेरे घर पर भी मामा के यहाँ से आये दिन कुछ न कुछ परोसा आता ही था |    जब भी घर पर कुछ खाना होता और नॉन वेज बनता तो मामाजी ही बनाते थे | उस समय youtube तो नहीं था पर वो नयी नयी रेसिपी खुद से ही try करते थे | गर्मियाँ हो तो मेनू में नॉन वेज - बाटी या फिर वेज में दाल - बाटी - चूरमा या खीर - पुड़ी और सर्दियाँ हो तो नॉन वेज - मक्की के ढोकला या वेज में दाल - ढोकला, दाल - बाटी -चूरमा, खिचड़ी का कॉम्बिनेशन होता  था | एक चीज़ जो मुझे आज भी बहुत याद आती ...

दिवाली और पटाखें

दिवाली पर हो सकता है सबको अलग अलग चीज़ो का इंतज़ार रहता होगा | लेकिन मुझे रहता था एक काली नीली थैली का जो हमें मामा ज्यादातर दिवाली की शाम तक दे ही देते थे | यह एक विशेष पॉलीथिन की थैली थी जिसमे होते थे भिन्न भिन्न प्रकार के पटाखे |  मामा, परिवार के सभी बच्चों को दिवाली के दिन इस तरह की पटाखों की थैली देते थे | थैली के अंदर पटाखें भी उम्र के हिसाब से होते थे | छोटे बच्चो की थैली में छोटे पटाखे जैसे हरे रंग के छोटे छुटपुट पटाखे जो आदि बार खारिज निकलते थे और कुछ की आवाज़ ऐसी होती थी जैसे इसमें बुलेट बम्ब की जान आ गयी हो | इसके साथ में होती थी फुलछडीयो के पैकेट, टिकड़ियो के रील के रोल्स, साप की गोटियों की डिब्बिया, भींत भड़ाके, जमीन चक्कर, छोटी वाले अनार, रंगीन रोशनी वाली पेंसिल, रंगबिरंगी रौशनी वाली रस्सियाँ जिनसे जमीन पर नाम लिख लिखकर सारे मौहल्ले की जमीन अपने नाम कर लेते थे | बड़े बच्चो के पटाखों की थैली में होते थे हरे सुतली बम जिनको हमेशा कागज़ में रखकर जलाने को बोलते थे मामाजी | बुलेट बम जिसमे से थोड़ी देर चिंगारी निकलती थी जिससे भागने का समय मिल जाता था | बड़े वाले...