दिवाली पर हो सकता है सबको अलग अलग चीज़ो का इंतज़ार रहता होगा | लेकिन मुझे रहता था एक काली नीली थैली का जो हमें मामा ज्यादातर दिवाली की शाम तक दे ही देते थे | यह एक विशेष पॉलीथिन की थैली थी जिसमे होते थे भिन्न भिन्न प्रकार के पटाखे | मामा, परिवार के सभी बच्चों को दिवाली के दिन इस तरह की पटाखों की थैली देते थे | थैली के अंदर पटाखें भी उम्र के हिसाब से होते थे | छोटे बच्चो की थैली में छोटे पटाखे जैसे हरे रंग के छोटे छुटपुट पटाखे जो आदि बार खारिज निकलते थे और कुछ की आवाज़ ऐसी होती थी जैसे इसमें बुलेट बम्ब की जान आ गयी हो | इसके साथ में होती थी फुलछडीयो के पैकेट, टिकड़ियो के रील के रोल्स, साप की गोटियों की डिब्बिया, भींत भड़ाके, जमीन चक्कर, छोटी वाले अनार, रंगीन रोशनी वाली पेंसिल, रंगबिरंगी रौशनी वाली रस्सियाँ जिनसे जमीन पर नाम लिख लिखकर सारे मौहल्ले की जमीन अपने नाम कर लेते थे | बड़े बच्चो के पटाखों की थैली में होते थे हरे सुतली बम जिनको हमेशा कागज़ में रखकर जलाने को बोलते थे मामाजी | बुलेट बम जिसमे से थोड़ी देर चिंगारी निकलती थी जिससे भागने का समय मिल जाता था | बड़े वाले...